विशेष आलेख : नरसिंहपुर जिले का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

Neemuch 05-08-2022 Regional

नरसिंहपुर। नरसिंहपुर जिला ऐतिहासिक रूप से अपने- आप में प्रसिद्धि हासिल किये हुये है। मध्यप्रदेश के बीचों- बीच नर्मदा नदी और देश के बीचों बीच बसा होने के कारण नरसिंहपुर जिला देश में एक अलग स्थान रखता है तथा नर्मदा कछार के कारण एशिया में नरसिंहपुर जिले की जमीन सबसे उपजाऊ मानी जाती है।
मध्यप्रदेश का यह जिला कृषि क्षेत्र में अग्रणी ही नहीं बल्कि उत्तर भारत का सबसे पहले पूर्ण साक्षर घोषित जिला है। महाकौशल क्षेत्र और बुंदेलखंड क्षेत्र की छाया में रहते हुये भी नरसिंहपुर ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनायी है। 
नरसिंहपुर की मिट्टी ने अनेक महापुरूषों को जन्म दिया है। जिन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महर्षि महेश योगी एवं ओशो रजनीश जैसे आध्यात्मिक गुरू नरसिंहपुर जिले के सपूत रहे हैं। जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को समृद्ध बनाया है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार श्री सैय्यद हैदर रजा की नरसिंहपुर जिला कर्मभूमि है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक विचारक श्री श्यामाचरण दुबे, हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार, डॉ. रामकुमार वर्मा, श्री भवानीप्रसाद मिश्र, पंडित ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी नरसिंहपुर की धरती पर ही पैदा हुये हैं। नरसिंहपुर को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत पर गर्व है।
स्वतंत्रता आंदोलन में नरसिंहपुर जिले के शहीद
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में नरसिंहपुर जिले के अनेक व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। नरसिंहपुर जिले के शहीदों में हीरापुर के राजा हिरदेशाह को 1842 के विद्रोह का नेतृत्व करने पर पकड़े जाने के बाद फांसी दी गई। मदनपुर के जमींदार ढेलनशाह ने 1842 के विद्रोह और 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया। उन्हें 1858 में फांसी दी गई। मदनपुर के ही नरवर शाह की 1858 में जेल में मृत्यु हुई। दिलहेरी के ठाकुर गंजन सिंह ने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व कर वीरगति पाई। दिलहेरी के ही दलगंजन सिंह को 1857 की क्रांति में सक्रिय रहने के कारण पकड़े जाने पर फांसी दी गई। कौंड़िया के नन्हे लाल पोद्दार की 1927- 28 में बम बनाते समय विस्फोट होने से मृत्यु हो गई। चीचली के मंशाराम एवं गौराबाई की 23 अगस्त 1942 को पुलिस की गोली से शहादत हो गई। चीचली के प्रेमचंद कसेरा एवं सुखलाल कसेरा की मृत्यु पुलिस की मार से हो गई। मानेगांव के ठाकुर रूद्रप्रताप सिंह की 29 मार्च 1944 की जेल में शहादत हो गई। इस दौरान क्रांतिकारी ठाकुर निरंजन सिंह, चौधरी शंकरलाल दुबे समेत जिले के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होकर जेलों में बंद रहे। इनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय है।
नरसिंहपुर जिला में स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
डिप्टी कमिश्नर आईजी बोर्न ने सन् 1918 में नरसिंहपुर जिले का कार्यभार संभाला और सभी संभव तरीकों से स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने में लग गया। उसने अपने पहले दौरे में ही पहले से ही ऋण ग्रस्त मालगुजारों से युद्ध कोष के लिए एक लाख रूपये वसूल कर लिये, जबकि युद्ध विराम पर हस्ताक्षर हो चुके थे। दरबार, प्रदर्शनों और निरर्थक प्रयोजनों के लिए डिप्टी कमिश्नर दान वसूल किया करता था। सन् 1924 में उसने बरमान में चल रहे जिला सम्मेलन पर मल फिकवाने की योजना बनाई और परिणाम स्वरूप घातक हथियारों से लैस हजारों आदमी उसे मारने के लिए क्रुद्ध हो उठे। अंग्रेजों से बदलने की भावना से प्रेरित होकर गयादत्त, एमएल कोचर, शंकर लाल चौधरी आदि जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने एक विरोध दल का गठन किया, ताकि शासन के प्रति वफादार लोगों को अपनी ओर मिलाया जा सके। प्रयास सफल हुये और नरसिंहपुर तथा गाडरवारा तहसील के अधिकतर मालगुजार उनके साथ आ मिले और उन्होंने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन के लिए उदारतापूर्वक दान दिया।
सन् 1918 में जिले में होम रूल लीग की शाखा खोली गई। 24 नवम्बर 1918 को प्रांतीय कांग्रेस समिति का पुनर्गठन किया गया और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के लिए सदस्यों के निर्वाचन में नरसिंहपुर के मानिकचंद्र कोचर भी निर्वाचित किये गये। इसके बाद 1920- 21 में कांग्रेस की एक शाखा खोली गई। उसकी प्रमुख गतिविधियां कांग्रेस के असहयोग आंदोलन का प्रचार करना था। इसमें विदेशी वस्तुओं, शालाओं, महाविद्यालयों तथा विधि न्यायालयों का वहिष्कार, उपाधियों का परित्याग, शराब की दुकानों पर धरना तथा विदेशी वस्त्रों को जलाने के कार्य शामिल थे। विधानसभा के निर्वाचनों का वहिष्कार करने के उद्देश्य से सन् 1920 में नरसिंहपुर में एक अत्यंत आवश्यक बैठक बुलाई गई। इसमें रविशंकर शुक्ल, राघवेन्द्र राव, डॉ. मुंजे, दौलत सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णुदत्त शुक्ल और अन्य नेताओं ने बैठक में भाग लिया और असहयोग करने का निर्णय लिया।
असहयोग आंदोलन
इस अवधि के दौरान शराब की दुकानों पर धरने को तीव्र बनाया गया। इस अभियान में जिले के आबकारी शुल्क की आय को एक लाख रूपये से 25 हजार रूपये तक गिराने में कांग्रेस स्वयंसेवकों को सफलता मिली। सन् 1923 में शासन को विवश होकर जिले को किसी भी प्रकार की शराब के लिए निषिद्ध क्षेत्र घोषित करना पड़ा। इसी वर्ष अप्रैल से अगस्त तक जब नागपुर में झंडा सत्याग्रह को लेकर अशांति फैली इसमें जिले के स्वयंसेवकों ने भाग लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
जिले में वन कानूनों को तोड़ने का वन सत्याग्रह चीचली में एक सप्ताह तक चलता रहा, किंतु बचई वन में आंदोलन शुरू होने के पहले ही सभी स्वयंसेवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। नरसिंहपुर में विधि विरूद्ध संघ अध्यादेश लागू किया गया। महाकौशल कांग्रेस समिति व सभी जिला कांग्रेस समितियां अवैध घोषित कर दी गईं। पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया, जब 1932 में नरसिंहपुर को होशंगाबाद जिले में मिला दिया गया। हरिजन कोष संग्रहण के लिए सन् 1933 में गांधी जी जिले में आये। जिला कांग्रेस समिति के मुख्यालय करेली में आयोजित सभा में उन्हें थैली भेंट की गई। इसके बाद कांग्रेस की गतिविधियों में तेजी आई।
8 अगस्त 1940 को वायसराय लिनलिथगो ने कांग्रेस के समक्ष प्रस्ताव रखा कि युद्ध के बाद भारत के लिए एक नये संविधान के निर्माण के लिए एक प्रतिनिधि सभा गठित करने का विचार है। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को असंतोषजनक माना और महात्मा गांधी के नेतृत्व में अक्टूबर 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह छेड़ दिया। इस आव्हान से प्रेरणा लेकर नरसिंहपुर के ठाकुर निरंजन सिंह, श्याम सुंदर नारायण मुशरान, कुंदन लाल तिवारी, शंकर दत्त तिवारी, राम सिंह चौहान, ठाकुर रूद्र प्रताप सिंह, चौधरी पुशू सिंह, दौलत सिंह, हरिनारायण राठी, श्यामलाल जायसवाल, बीपी पचौरी और अन्य लोग इस आंदोलन में कूद पड़े। वे भारत प्रतिरक्षा नियम- डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के अधीन गिरफ्तार कर लिये गये और विभिन्न अवधियों के लिए उन्हें कठोर कारावास की सजायें दी गईं। उन पर भारी जुर्माना लगाया गया। महाकौशल क्षेत्र में सत्याग्रह में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी द्वारा अनुमत 2800 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से 311 सत्याग्रही नरसिंहपुर जिले के थे। इन व्यक्तियों ने अक्टूबर 1940 तथा मई 1941 के बीच सत्याग्रह में भाग लिया।
भारत छोड़ो आंदोलन
अप्रैल 1942 में क्रिप्स मिशन के असफल होने के बाद कांग्रेस कार्यकारिणी ने 14 जुलाई को वर्धा में प्रस्ताव पारित कर अंग्रेज शासकों को एक निश्चित अवधि के भीतर भारत छोड़ने को कहा। 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में बड़े पैमाने पर सामूहिक आंदोलन शुरू करने का प्रस्ताव पारित हुआ। 10 अगस्त को नरसिंहपुर जिला कांग्रेस समिति को गैर कानूनी संघ घोषित किया गया। करेली में समिति के मुख्यालय की तलाशी ली गई और अभिलेख जप्त कर लिये गये। इस दिन रघुनाथ सिंह किलेदार को गिरफ्तार कर लिया गया।
 ठाकुर निरंजन सिंह के खिलाफ भी वारंट जारी किया गया, परंतु वे गिरफ्तार नहीं किये जा सके। नेताओं की गिरफ्तारी से चारों तरफ असंतोष फैल गया। गाडरवारा में 10 से 12 अगस्त तक पूर्ण हड़ताल रही। 11 और 12 अगस्त को करेली तथा गोटेगांव में हड़ताल रही। छात्रों ने नरसिंहपुर और गाडरवारा में 10 अगस्त से कई दिनों तक जुलूस निकाले। तहसील भवन में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए 14 अगस्त को गाडरवारा में जुलूस निकाला गया। 8 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर भीड़ को तितर- वितर किया गया। 18 अगस्त को तेंदूखेड़ा में स्थिति ने तब गंभीर मोड़ ले लिया, जब स्थानीय नेता बाबूलाल जैन को गिरफ्तार किया गया। श्री जैन ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। इस गिरफ्तारी के परिणाम स्वरूप 300 व्यक्तियों की भीड़ ने पुलिस दल को घेर लिया और हिंसा पर उतारू हो गई। पुलिस ने लाठी बरसा कर भीड़ को तितर- वितर कर दिया।
23 अगस्त को चीचली ग्राम में एक दुखद घटना उस समय घटित हुई, जब एक पुरूष तथा महिला मंशाराम तथा गौरा बाई की पुलिस द्वारा गोली चलाने से मृत्यु हो गई। यह दुखद घटना नर्मदा प्रसाद तथा बाबूलाल को गिरफ्तार किये जाने के कारण हुई थी। उन्होंने दो दिन पूर्व चीचली में आमसभा में अंग्रेज विरोधी भाषण दिये थे। करीब 1500 की जमा भीड़ को भयभीत करने के लिए पुलिस ने निर्दयता पूर्वक 20 चक्र गोलियां चलाई। इसी कारण से उक्त दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। अगले दिन 14 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। 27 अगस्त को कौंड़िया में विशाल आमसभा आयोजित की गई। भाषण देने पर वक्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अक्टूबर माह में यह आंदोलन जोश- खरोश से चलता रहा। कांग्रेसी गतिविधियां नहीं भड़के, इसके लिए शासन ने जिले के 7 प्रमुख नेताओं को 9 अगस्त 1943 में फिर से गिरफ्तार कर लिया। ये नेता अगस्त 1942 में गिरफ्तार किये गये थे, किंतु बाद में उनके कारावास की अवधि समाप्त होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। जनमानस में विदेशी आधिपत्य के विरूद्ध असंतोष की भावना बनी रही। यह स्थिति 1945 में उस समय तक बनी रही, जब तक कि कांग्रेस नेता छोड़ नहीं दिये गये। एक जुलाई 1947 को ब्रिटिश पार्लियामेंट ने भारतीय स्वतंत्रता विधेयक पारित किया और 14 अगस्त 1947 की अर्धरात्रि में देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नरसिंहपुर जिले में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर जेल में रखा गया। इनमें प्रमुख रूप से श्री शंकरलाल दुबे करताज 1923 व 1942 के आंदोलन में 4 वर्ष, श्री हल्कू प्रसाद नेमा गाडरवारा 1920 व 1942 के आंदोलन में एक वर्ष 7 माह, श्री हरनारायण राठी गाडरवारा 1920 एवं 42 में हर वर्ष 7 माह, श्री ज्वाला प्रसाद कृषक गोटेगांव 1941 व 1942 के आंदोलन में एक वर्ष 2 माह, श्री डालचंद जैन गोटेगांव 1941 व 42 के आंदोलन में एक वर्ष 2 माह, श्री रघुनाथ सिंह किलेदार भुगवारा 1940- 42 के आंदोलन में 4 वर्ष, श्री हरिविष्णु कामथ मेंगलूर 1939 व 40- 45 के आंदोलन में, श्री हरचंद्र वर्मा गाडरवारा 1940 व 42 के आंदोलन में एक वर्ष, श्री नत्थूप्रसाद मिश्रा कंदेली 1920 व 32 के आंदोलन में एक वर्ष 10 माह, श्री नीतिराज सिंह इमलिया 1920 व 32 के आंदोलन में एक वर्ष 10 माह, श्री प्रेमनारायण श्रीवास्तव नरसिंहपुर 1923 के आंदोलन में एक वर्ष 9 माह, श्री लक्ष्मीप्रसाद ज्योतिषी करेली 1930, 41 व 42 के आंदोलन में तीन वर्ष, श्री रणजीत सिंह लोधी छोटा छिंदवाड़ा 1942 के आंदोलन में एक वर्ष, श्री छोटेलाल काछी नरसिंहपुर ने सिविल कोर्ट पर तिंरगा फहराया एवं 1930 व 42 के आंदोलन में 6 माह, श्री लालजी वढ़ई मोहपा 1942 के आंदोलन में एक वर्ष 15 दिन, ठाकुर रूद्रप्रताप सिंह मानेगांव 1938, 40, 43 व 29 मार्च 1945 के आंदोलन में दो वर्ष, श्री बाबूलाल जैन गाडरवारा 1942 के आंदोलन में एक वर्ष 6 माह, श्री सुंदरलाल श्रीधर बोहानी 1936- 37, 40 व 42 के आंदोलन में एक वर्ष एक माह व 20 दिन, श्री बद्रीनाथ चौधरी करेली 1928 से 42 तक के आंदोलन में 4 वर्ष 5 माह, श्री कोमचंद जैन करेली 1940- 41 के आंदोलन में एक वर्ष, श्री गणेश प्रसाद तिवारी बम्हनी 1937 व 42 के आंदोलन में एक वर्ष, श्री रविशंकर भारतीय शर्मा नांदनेर 1942 के आंदोलन में एक वर्ष 2 माह, श्री बालाप्रसाद पचौरी 1942 के आंदोलन में एक वर्ष 3 माह, श्री तुलसीराम त्यागी करपगांव 1942 के आंदोलन में एक वर्ष तक कारावास में रहे। इसके अलावा छोटी- छोटी अवधि के लिए जिले के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कारावास में रहे। जिले के लगभग 148 स्वतंत्रता आंदोलनकारियों को कारावास दिया गया।
इसके अलावा अनेक कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन की जिम्मेदारी निभाई, संदेश वाहक बने, धन से मदद की, भूमिगत बुलेटिनों का वितरण किया। उन्होंने राजनैतिक परिषदों, कार्यकर्ता सम्मेलनों में स्वयंसेवक के रूप से सेवायें दी। इन सबके योगदान को भी जिले के स्वतंत्रता आंदोलन में भुलाया नहीं जा सकता।

प्रादेशिक