पारंपरिक खेती को छोड़ अपनाई हाईटेक नर्सरी की खेती हाईटेक नर्सरी बनाने में मिला प्रशासन का सहयोग

nspnews 17-03-2023 State


एनएसपीन्यूज। आज स्मार्ट किसान में पारंपरिक खेती से नर्सरी की तरफ जाकर अपनी किस्मत बदलने वाले युवा किसान जितेंद्र पटेल के बारे में हम आपकों बता रहा है। बड़वाह के छोटे से गांव सिरलाय में रहने वाले जितेंद्र पटेल 13.50 एकड़ में नर्सरी चलाते हैं। वे इस नर्सरी से आसपास के किसानों को पौधे उपलब्ध करवा रहे हैं। जितेंद्र ने बताया कि जब मैं पारंपरिक खेती करता था तो उच्च क्वालिटी के पौधे की कमी महसूस करता था। यही सोचकर मैंने नर्सरी शुरू की।
किसान जितेंद्र पटेल ने बताया कि 2005 तक हमारा परिवार पारंपरिक तरीके से खेती करता था। 2008 में कुछ नया करने के लिए मल्चिंग ड्रीप पद्धति से खेती शुरू की, लेकिन अनुभव नहीं होने के कारण इसमें घाटा हुआ। 2010 में करीब तीन लाख रुपए का नुकसान हुआ। इस नुकसान के बाद फिर मैंने कुछ नया करने का सोचा। मल्चिंग ड्रीप पद्धति तो फ्लॉप हो गई थी, इसलिए इसे छोड़कर नर्सरी लगाने का सोचा। पहला प्रयास विफल रहा था, इसलिए नर्सरी के लिए पहले रिसर्च की और तैयारी की। कई नर्सरी का भ्रमण किया। मध्य प्रदेश से बाहर जाकर भी कई नर्सरियां देखीं उनमें कैसे काम होता है यह जाना। आखिरकार पूरी तैयारी के साथ इसे शुरू किया और आज हम मुनाफा कमा रहे हैं।
हाईटेक और सामान्य नर्सरी में अंतर
जितेंद्र ने बताया कि हमारी नर्सरी हाईटेक है। इसे केंद्र सरकार से ग्रीन हाउस प्रमाण पत्र भी मिला है। हाईटेक नर्सरी में जमीन से 2 से 2.5 फीट ऊपर पौधे रोपे जाते हैं। इससे पौधे की जड़ें जमीन के संपर्क में नहीं होने के कारण इसमें मिट्टी से पैदा होने वाले रोग नहीं लगते हैं। हम प्रदेश में पहले थे जो मप्र में ये कॉन्सेप्ट लाए थे। इससे फसल में बीमारी लगने की समस्या से बहुत हद तक निजात मिली। इसे और हाईटेक बनाने के लिए मेरे भाई प्रदीप पटेल ने एक सॉफ्टवेयर बनाया है। इसमें ऑर्डर से लेकर डिलीवरी तक के सभी काम ऑनलाइन हो जाते हैं। नर्सरी में ऑटोमैटिक सीड सोइंग मशीन से बीज डाला जाता है। इससे पौधे अच्छी किस्म के बनते हैं। पौधे की जड़ों का एक समान विकास होता है। इसके रिजल्ट भी अच्छे आते हैं।
हाईटेक नर्सरी बनाने में मिला प्रशासन का सहयोग
जितेंद्र को अपनी नर्सरी को बढ़ाने के लिए सरकार से भी सहयोग मिला। उद्यानिकी विभाग के उपसंचालक केके गिरवाल ने बताया कि जितेंद्र को सबसे पहले 2013-14 में उद्यानिकी विभाग की बागवानी मिशन में 4000 वर्ग मीटर में 14 लाख 20 हजार के अनुदान पर शेड नेट हाउस दिया था। इसके बाद वर्ष 2019-20 में राज्य योजना में उनकी पत्नी और उनके भाई के नाम पर अलग-अलग मामले में कुल 7500 वर्ग मीटर में पॉली हाउस और शेड नेट हाउस के लिए 28 लाख का अनुदान मिला। इससे जितेंद्र की नर्सरी का न सिर्फ विस्तार हुआ बल्कि नई तकनीक लाने में भी मदद मिली।

मिर्च के चुनाव के बाद बढ़ा मिर्च का रकबा
उद्यानिकी उपसंचालक केके गिरवाल ने बताया कि श्एक जिला एक उत्पादश् में मिर्च फसल का चुनाव होने के बाद किसानों में मिर्च की खेती के प्रति रुझान बढ़ा है। वर्ष 2017-18 और 2018-19 में हरी मिर्च का रकबा 525 हेक्टेयर, 2019-20 में 616 हेक्टेयर, 2020-21 में 1012, 2021-22 में 1096 हेक्टेयर रकबे में हरी मिर्च लगाई गई। जबकि लाल मिर्च के रकबे की बात करे तो 2017-18 में 32150 हेक्टेयर रकबे के बाद वर्ष 2018-19 में रकबा कम होकर 25,369 हेक्टेयर रह गया। इसके बाद अगले वर्ष 2019-20 में और कम होकर 23,280 हेक्टेयर रकबा रहा। श्एक जिला एक उत्पादश् में मिर्च को चिह्नित करने के बाद अगले वर्ष 2020-21 में रकबा बढ़कर दो गुना से ज्यादा 49,052 हेक्टेयर हुआ। इसके अगले वर्ष रकबा और बढ़कर 51,350 हेक्टेयर हो गया।

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